खाकी परिवार के आक्रोश को भांपने में नाकाम रहे पुलिस अफसर

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देहरादून। 4600 के ग्रेड पे मसले पर उत्तराखंड पुलिस परिवार का आक्रोश अप्रत्याशित नहीं था। विरोध की यह चिंगारी काफी दिनों से सुलग रही, जिसे भांपने में पुलिस मुख्यालय और शासन नाकाम रहा है। सिर्फ सोशल मीडिया पर आंदोलन ना करने की अपील करने की रस्म निभाई गई। पुलिस कर्मचारियों के परिजनों के आंदोलन की राह पर आने के पीछे अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच अविश्वास की खाई गहराने को बड़ी वजह माना जा रहा है। वैसे भी अनुशासित पुलिस बल में लामबंदी को किसी भी लिहाज से जायज नहीं ठहराया नहीं जा सकता है। अब सियासी दल भी इसे मुद्दा बनाकर सरकार की घेराबंदी में जुट गए है।
पुलिस महकमें के जवानों को 4600 के ग्रेड पे का लाभ देने का मसला नया नहीं है। पुलिस अफसर और शासन बरसों से हटो-बचो की नीति अपनाकर कर उसे टालता रहा है। पहले पुलिस जवानों को 10, 16 और 26 साल की नॉकरी पर प्रमोशन मिलने का प्रावधान था, मगर पांच साल पहले बदलाव करते हुए 10, 20 और 30 साल में प्रमोशन की नई व्यवस्था लागू कर दी गई। निर्धारित मानक पूरे करने के बाद में पुलिस कर्मियों को इसका लाभ नहीं दिया गया। नतीजा यह हुआ कि पुलिस जवानों के बीच आक्रोश पनपता चला गया। बीते कई माह से ग्रेड पे का यह मामला सोशल मीडिया की सुखियों बना हुआ है। शासन ने इस मसले पर पहल करते हुए मंत्री सुबोध उनियाल की अगुवाई में समिति भी गठित कर दी थी। पुलिस मुख्यालय के कई अधिकारियों ने अपने स्तर पर शासन स्तर ग्रेड पे के मसले को सुलझाने के प्रयासों की जानकारी देकर संयम बरतने की अपील की। अफसरों को लगा था कि
अनुशासित पुलिस बल होने के नाते विरोध के स्वरों को हवा नहीं मिल पायगी। पुलिसकर्मियों के आगे आने की दशा में अनुशासन हीनता की कारवाही का चाबुक चल जाता, लेकिन विरोध की कमान परिजनों ने संभालकर अधिकारियों के हाथ भी बांध दिए है।
देहरादून और रूद्रपुर में पुलिस कर्मचारियों ने रविवार को पुलिस अफसरों की अपील को दरकिनार कर आंदोलन का बिगुल बजाया है, उससे यह साफ हो गया है कि सरकार के लिए अब 4600 ग्रेड पे के मामले को ज्यादा दिन लटकाना आसान नहीं होगा। चुनावी साल होने के कारण सियासी दलों ने भी पुलिस कर्मचारियों के परिजनों के सुर में सुर मिलाने में देरी नहीं की है। यह बात अलग है कि सत्ता में रहते हुए इस मसले को उलझाने वाले अब ग्रेड पे का राग अलाप रहे है।
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पहले भी सामने आया था आक्रोश
उत्तराखण्ड पुलिस में विरोध के स्वर पहली बार उभरे है। इससे पहले हरीश रावत सरकार में वेतन विसंगतियो के विरोध में काली पट्टी बांधकर विरोध जताया था। तत्कालीन डीजीपी बीएस सिद्धू ने कारवाही का चाबुक चलाकर विरोध के स्वरों को सख्ती से दबा दिया था। उस समय कई पुलिसकर्मियों को दंडित करने के साथ एफआईआर तक दर्ज की गई थी।
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जल्द निकलेगा ठोस हल
अनुशासित फ़ोर्स है। अनुशासन में रहना चाहिए। परिजनों ने प्रदर्शन किया था। कुछ लोग समझने के बाद मान गए हैं। पुलिस मुख्यालय अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहा है कि सिपाहियों की जो मांग है। उसका निराकरण किया जाए। इसके लिए समय- समय पर अधिकारियों ने अपील भी की है। शासन स्तर पर समिति भी बनी है जो इन सब बातों पर विचार कर रही है। जल्द ही इसका कोई ठोस हल निकलेगा।
– डॉ निलेश आनंद भरने, सहायक पुलिस प्रवक्ता, उत्तराखंड पुलिस

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