बच गयी दोनों परिवार की जान दी एक दूसरे के पतियों को किडनी

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उत्तरभारत / देहरादून : आज के समय मे भी हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई नही माने जाते। आज भी हिन्दू और मुस्लिम का नाम एक साथ जुड़कर या तो उन्हें लव जिहाद का रूप दे दिया जाता है। या फिर उन्हें पाकिस्तान के उन आतंकियों के साथ जोड़कर देखा जाता है। हम यह क्यों भूल जाते है। यह वही लोग है जो पाकिस्तान में नही बल्कि हिंदुस्तान में रह रहे है। औऱ हमारे जैसे ही एक आम इंसान है। आपको बता दे ईश्वर ने इंसान बनाया जाति, धर्म पर भेद भगवान के बनाए गए इंसानो ने जाग्रत किया है। पर आज जो खबर उत्तरभारत आपके साथ साझा करना चाहता है। वह देहरादून जिले से है। जहाँ 2 परिवारों को एक दूसरे की मद्दत की जरूरत थी लेकिन खास बात यह है कि यह दोनों परिवार एक हिन्दू समुदाय से संबंध रखता है, तो दूसरा मुस्लिम समुदाय से पर हम यह याद रखना होगा कि ईश्वर ने इंसान को एक जैसा ही शरीर दिया है। हाथ, पैर, दिल सब कुछ बस रंग ही अलग है। कोई गोरे होते है तो कोई सावले तो कोई काले. ..बस रंग ही अलग है दिल और जान एक है। चलिए इस खबर को हम पूरा आपके साथ साझा करते है………

देहरादून के डोईवाला निवासी अशरफ अली (51) दोनों किडनी खराब होने के कारण बीते दो साल से हेमोडायलिसिस पर थे. उनके पास किडनी टांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प था. अशरफ की पत्नी सुल्ताना खातून अपनी किडनी देने के लिए तैयार थी लेकिन ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो पाया. परिवार में समान ब्लड ग्रुप कोई करीबी रिश्तेदार भी नहीं था, वहीँ इसी बीमारी से पीड़ित एक अन्य मरीज पौड़ी के कोटद्वार निवासी विकास उनियाल (50) की भी दोनों किडनी खराब हो चुकी थी. और विकास की पत्नी सुषमा के साथ भी ऐसे ही हालात थे विकास की पत्नी सुषमा उनियाल का ब्लड ग्रुप भी मैच नहीं होने के कारण वह अपनी किडनी नहीं दे सकती थीं. दोनों परिवारों को किडनी देने वाला नहीं मिल रहा था. दोनों की जान खतरे में थी. दोनों पुरुषों की पत्नियों का ब्लड ग्रुप अपने पति से मिल नहीं रहा था, जिस वजह से वह किडनी नहीं दे सकती थीं. ऐसे में संकट और गहरा गया था, और बार-बार हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया इनकी ताकत पर भी भारी पड़ रही थी. लेकिन, लड़ने की प्रबल इच्छाशक्ति ने इन्हेंं आगे बढ़ाया.

हिमालयन अस्पताल के इंटरवेंशनल नेफ्रोलोजिस्ट डॉ. शादाब अहमद ने एक बयान में कहा कि हमने दोनों परिवारों की अलग से मीटिंग बुलवाई. और जांच में पता चला कि सुषमा का ब्लड ग्रुप अशरफ और सुल्ताना का विकास से मैच हो रहा है. इसमें हमने उनसे कहा कि अगर महिलाएं अपनी किडनी दूसरे के पति को दे देती हैं, तो दोनों की जान बच सकती है. अपने पतियों की जान बचाने के लिए सुषमा और सुल्ताना बिना देर किए एक-दूसरे के पति को किडनी देने का फैसला किया, इसके बाद इस स्वैप ट्रांसप्लांट को करने के लिए यूरोलाजी व नेफ्रोलाजी की एक संयुक्त टीम बनाई गई किडनी वहीँ ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. किम जे मामिन के अनुसार ट्रांसप्लांट के लिए उत्तराखंड राज्य प्राधिकरण समिति से अनुमति ली गई, जिसके बाद सर्जरी के दौरान दो अलग-अलग आपरेटिंग रूम में सुल्ताना व सुषमा पर अलग-अलग डोनर नेफरेक्टोमी की गई. फिर सुल्ताना की किडनी विकास उनियाल और सुषमा की अशरफ अली में ट्रांसप्लांट कर दी गईं. और अब चारों की हालत सामान्य है.

 

 

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